मूर्धन्य साहित्यकार बाबू गुलाबराय की 133वी जयन्ती के अवसर पर बाबू गुलाबराय स्मृति संस्थान द्वारा वर्चुअल समारोह का आयोजन दिनांक 15 फरवरी 2021 को किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्व हिन्दी समिति के अध्यक्ष डॉ दाऊजी गुप्त ने कहा कि बाबू गुलाबराय जी अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के द्वारा अपने समय के दीप स्तम्भ के रूप में वर्तमान में नयी पीढी और नवोदित लेखकों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि सभी हिन्दी भाषी राज्यों में व प्रमुख साहित्यिक संस्थानोंमें में बाबू जी की प्रतिमाएं स्थापित होनी चाहिए और पुस्तकालयों में उनकी रचनाओं का विशिष्ट स्थान होना चाहिए।
समारोह में वर्ष 2021 के बाबू गुलाबराय पुरुस्कार से श्रीमती सुधा आदेश (लखनऊ) को तथा धर्मपाल विद्यार्थी पुरुस्कार से डॉ प्रवीण गुप्ता (दिल्ली) एवं श्री विनोद चूड़ामणि (मथुरा) को सम्मानित किया गया।
इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती तथा बाबू जी के चित्रों के समक्ष दीप प्रज्वलित करके स्मृति संस्थान के अध्यक्ष डॉ. श्रीभगवान शर्मा , महामंत्री डॉ. तरुण शर्मा एवं बाबू गुलाबराय जी के प्रपौत्र श्री सींजय राय (पार्षद) ने किया। डॉ. ज्योत्सना शर्मा ने सरस्वती वंदना की मधुर प्रस्तुति दी। सम्मानित विभूतियों का परिचय प्रस्तुत करते हुए, उपाध्यक्ष प्रो. सुबोध शंकर ने संस्थान की नई वेबसाइट की जानकारी भी प्रदान की। अध्यक्ष डॉ श्रीभगवान शर्मा ने संस्थान का परिचय देते हुए, बाबू गुलाबराय जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ. तरुण शर्मा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती गुंजन गुप्ता ने किया।कनिष्क शर्मा ने तकनीकी व्यवस्थाओं का सञ्चालन किया। कार्यक्रम में संस्थान कार्यकारी अध्यक्ष प्रोसाहसी तिवारी, उपाध्यक्ष श्री आदर्श नन्दन गुप्ता, श्रीमती निमिषा सिंहल, अवधेश शर्मा, दत्तात्रेय सिंहल, श्रीमती वसुधा गुप्ता, श्री योगेंद्र गुप्ता, श्री राकेश कुमार, डॉ. सुधीर शंकर गुप्ता, डा दीपशिखा इंजिनियर, श्री विवेक गुप्ता, श्री भारतेन्दू गुप्ता, श्री आर. के. जैन सहित बडी संख्या में साहित्य प्रेमी शामिल रहे।
सृष्टि नियन्ता ने जब यह सोचा कि ‘एकोऽहं बहुस्याम्’ तो सृष्टि के जड़ चेतन का विकास हुआ। ‘रामचरित मानस’ के बालकाण्ड के छठे दोहे में गोस्वामी जी ने कहा है-
जड़ चेतन गुन दोष मय विश्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि वारि विकार।।
इस सृष्टि के चेतन समुदाय में नर और पशु-पक्षी आदि जीवधारी आते हैं। पर इनमें मानव योनि बड़ी दुर्लभ होती है, कहा गया है-
बड़े भाग मानुष तन पावा।
सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थन गावा।।
यह नर या मानव योनि ईश्वर ने सृष्टि के हितार्थ की है। नर और पशु में प्रायः सभी बातें समान रूप से पाई जाती हैं। शास्त्र कहता है-
आहार निद्रा भय मैथुनंच सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।
धर्मोहि तेषाम् अधिकोविशेषो धर्मेण हीना पशुभिः समाना।।
अर्थात् नर में धर्म की सत्ता होना अनिवार्य है। धर्म का सम्बन्ध ‘रिलीजन’ से नहीं हैं अपतिु धर्म की परिभाषा है ‘धारयति इति धर्मः’ अर्थात् वे सद्वृत्तियाँ- सत्य-निष्ठा, ईमानदारी, परोपकारी, कर्तव्य परायणता ही धर्म है। अतः मानव का यह दायित्व है कि इन गुणों का अपने में समावेश करे, सृष्टि का परोपकार करे। जिन मानवों में ये गुण होते हैं वे ही इस सृष्टि में महान् पुरुष या अमर मानव होते हैं। बाबू गुलाबराय जी इन्हीं गुणों की प्रतिमूर्ति थे। वे अंहकार शून्य एवं ‘विद्याददाति विनयम्’ की साक्षात् प्रतिमूर्ति थे।
बाबू गुलाबराय हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार एवं समीक्षक थे। आपकी कृतियों से लाभान्वित होने वाले पाठकों की संख्या का लेखा-जोखा किसी के पास नहीं है। सन् 1913 में एम.ए. दर्शन शास्त्र में सेण्ट जाॅन्स काॅलेज, आगरा से करने के पश्चात् आपने छतरपुर राज्य में वहाँ के राजा के निजी सचिव, दीवान तथा मुख्य न्यायाधीश आदि पदों पर लगभग 20 वर्ष तक कार्य किया। यहीं रहते हुए आपने अपनी साहित्य साधना आरंभ की और आपका प्रथम ग्रंथ ‘शान्ति धर्म’ सन् 1913 में प्रकाशित हुआ।
छतरपुर से अवकाश ग्रहण करन के पश्चात् आप सन् 1934 में सेण्ट जाॅन्स काॅलेज, आगरा में अवैतनिक हिन्दी प्राध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। यहाँ आपने स्नातकोत्तर हिन्दी कक्षा के छात्रों को शिक्षा प्रदान की साथ ही आपने नवोदित साहित्यकारों एवं शोध छात्रों का मार्ग दर्शन किया। सन् 1935 से आपने ‘साहित्य सन्देश’ नामक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका का आगरा से सम्पादन किया। आपने अपने जीवन में लगभग 50 ग्रंथों का सृजन किया। इस सृजन में आपने दर्शन ग्रन्थों, आलोचना ग्रंथों, निबंधों, आत्मचरित एवं जीवनी परक विविध कृतियों का प्रणयन किया। सन् 1957 में आगरा वि0वि0 ने आपको सम्मानार्थ डी.लिट्. की डिग्री प्रदान की।
यद्यपि उनका कृतित्व ही उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए पर्याप्त है तथापि उनके परिवारीजनों एवं समाज के दानी महानुभावों ने उनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए सन् 1965 में ‘‘ बाबू गुलाबराय स्मृति संस्थान’’ की स्थापना की है। संस्थान का आज जो भी रूप है उसमें बाबू गुलाबराय जी के परिवाजनों स्व० रामशंकर गुप्त, स्व0 श्री विनोद शंकर गुप्त, सुबोध शंकर गुप्त, श्री राकेश जी, श्री एस0एस0 गुप्ता, संजय राय, गौरव राय, भारतेन्दु गुप्त, अक्षत गुप्त, बाबू जी की पुत्रियों- सीता गुप्ता, सुधा गुप्ता, प्रो0 मंजू श्री (मगध वि0वि0) सभी का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहता है।
सन् 2020 में दिल्ली दरवाजा पर बाबूजी की कांस्य प्रतिमा का अनावरण आगरा के महापौर श्री नवीन जैन द्वारा किया जा चुका है। इस संस्थान के प्रस्तावित कार्य बहुमुखी एवं बहुउद्देश्यीय हैं यथा-बाबू जी की रचनाओं के सुलभ संस्करण प्रकाशित करना, उनके साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए आयोजन करना, बाबू जी की प्रिय विधाओं- हास्य, व्यंग्य, निबंध, समीक्षा आदि से सम्बन्धित साहित्य पर विचार-विमर्श एवं नवलेखन को प्रोत्साहित करना आदि। इसके अतिरिक्त आगरा वि0वि0 में बाबू जी के नाम एक विशिष्ट पीठ स्थापना करना भी है।
बाबू जी की जन्म शताब्दी भारत के विभिन्न नगरों- भोपाल, छतरपुर, ग्वालियर, दिल्ली, लखनऊ, आगरा आदि में गरिमापूर्ण ढंग से मनायी गयी थी। सन् 2002 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के कर कमलों द्वारा बाबू जी पर एक पाँच रुपये का डाक टिकट निर्गत किया गया था।
बाबू जी का 125वाँ जन्म-जयन्ती समारोह- लखनऊ, हिसार, गया, आगरा में तथा दिनांक 10 फरवरी 2012 को नई दिल्ली में मनाया गया था। ‘बाबू गुलाबराय यशस्वी सम्मान’ देश एवं विदेश के समर्पित हिन्दी सेवियों को दिया जाता रहा है। बाबू गुलाबराय सम्मान 11 हजार रूपये का है तथा अन्य सम्मान पाँच-पाँच हजार के हैं। ये सभी बाबू जी के परिवारीजनों, नगर के दानी महानुभावों के सहयोग से दिये जाते हैं। आदरणीय स्व0 धर्मपाल विद्यार्थी एवं स्व0 सुशील विद्यार्थी जी का इसमें भरपूर सहयोग रहता रहा है। सम्प्रति श्री सतीश चन्द गुप्त ‘विद्यार्थी’ जी का इस शृंखला में यशस्वी आर्थिक सहयोग चल रहा है। संस्थान के पूर्व अध्यक्ष डाॅ0 राम अवतार शर्मा जी का भी इस क्षेत्र में सराहनीय योगदान रहा है।
अब तक ये पुरस्कार ‘अखिल विश्व हिन्दी समिति’ न्यूयार्क, के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ0 दाऊजी गुप्त, न्यूयार्क के डाॅ0 बी0के0 मेहता, कनाडा की श्रीमती स्नेहलता ठाकुर, टोरेण्टो के डाॅ0 गोपाल बघेल, डाॅ0 रत्नाकर पांडे (दिल्ली), डाॅ0 परमानन्द पांचाल (दिल्ली), श्रीमती बी0एस0 शान्ताबाई (कर्नाटक), स्व0 श्री बालशौरि रेड्डी (चैन्नई), कविवर सोमठाकुर, देवकी नन्दन कुम्हेरिया, श्री भगवती प्रसाद देवपुरा, प्रेा0 इन्द्रनाथ चैधुरी, मोहन स्वरूप भाटिया, डाॅ0 नित्यानन्द तिवारी, श्री वीरेन्द्र यादव, प्रो0 रमेश चन्द्र शाह, पद्मभूषण श्री त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी, श्री राजेन्द्र अरुण (माॅरीशस), श्री वेद्र प्रकाश अमिताभ, प्रेमचन्द साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् श्री कमल किशोर (गोयनका) आदि समर्पित हिन्दी सेवियों को प्रदत्त किया गया है। आज इस समारोह में ‘बाबू गुलाबराय सम्मान’ हिन्दी की सुप्रसिद्ध रचनाकार सुश्री सुधा आदेश (लखनऊ) को, ‘बाबू धर्मपाल विद्यार्थी सम्मान’ अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, दिल्ली के महामंत्री तथा ‘पब्लिक न्यूज दिल्ली’ समाचार पत्र के प्रबंध निदेशक डाॅ0 प्रवीन गुप्ता एवं मथुरा से प्रकाशित ‘ब्रज गरिमा’ समाचार पत्र के यशस्वी सम्पादक श्री विनोद कुमार चूड़ामणि जो को दिया जा रहा है।
हिन्दी के मूधर्न्य साहित्यकार बाबू गुलाबराय का 130 वां जन्म दिवस मनाया गया। मौके पर वक्ताओं ने कहा कि न केवल आगरा, सम्पूर्ण हिंदी जगत बाबू गुलाबराय की सेवाओं के साथ परिचित है।
शुक्रवार को स्वर्गीय बाबू गुलाबराय जी की दिल्ली गेट में स्थापित प्रतिमा का अनावरण हुआ, जिसमें आगरा नगर के महापौर नवीन जैन, मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
बाबू गुलाब राय की जयंती पर,शुक्रवार को नागरी प्रचारिणी सभा समारोह आयोजित की गई। निदेशक डॉ श्री भगवान शर्मा, पूर्व विधायक चौधरी बदन सिंह, डॉ मधुरिमा शर्मा, कैप्टन व्यास चतुर्वेदी, डॉ कमलेश नगर आदि वहाँ उपस्थित थे।